शिक्षण की प्रकृति (Nature Of Teaching)

शिक्षण की प्रकृति पर विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रस्तुत किये है-

(1) शिक्षण कला और विज्ञान दोनों है.

यह कथन ऍन.एल.पेज का है, जिन्होंने शिक्षण को कला इसलिये कहा क्योंकि यह अनुभवों पर आधारित है और विज्ञान इसलिए कहा क्योंकि इसमें क्रमबद्धता पायी जाती है तथा विज्ञान का शाब्दिक अर्थ ही क्रमबद्ध अध्ययन से लिया जाता है|

(2) शिक्षण एक सोउद्देश्यपूर्ण व वर्णनात्मक प्रक्रिया है.

अर्थात् शिक्षण किसी न किसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर दिया जाता है|

(3) शिक्षण एक अंतः प्रक्रिया है.

शिक्षक +शिक्षार्थी इसमें शिक्षक व शिक्षार्थियों के मध्य अंतः क्रिया होती है, दोनों में से किसी एक के न होने पर यह अंतः क्रिया नहीं हो सकती है|

(4) शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है.

शिक्षण व्यवस्था बाल-केन्द्रित होने के कारण बालक का सर्वागीण विकास करती है. सफल शिक्षण तब तक नहीं माना जायेगा जब तक छात्र के 3 पक्ष (क्रमशः ज्ञानात्मक, भावात्मक व क्रियात्मक) का विकास किया जाता है|

(5) शिक्षण एक त्रिध्रुवीय प्रक्रिया है.

यह कथन ब्लूम का है, जिन्होंने इसके 3 पक्ष बताये है- शिक्षक के उद्देश्य + सीखने के अनुभव + व्यवहार में परिवर्तन, इस प्रकार की प्रक्रिया ही वास्तविक शिक्षण है|

(6) शिक्षण मानव-प्रकृति पर आधारित है.

(7) शिक्षण औपचारिक और अनौपचारिक प्रकिया है.

शिक्षक द्वारा सीखना औपचारिक शिक्षण है व कक्षा के बाहर भी अन्य साधनों से सीखना अनौपचारिक शिक्षण है|

(8) शिक्षण निर्देशन की प्रक्रिया है.

शिक्षक छात्र की रूचि, क्षमता, अभिवृति, आवश्यकता आदि को ध्यान में रखकर छात्र को सही दिशा-निर्देश देता है, जिससे छात्र के व्यवहार में परिवर्तन आता है|