स्वामी विवेकानंद


स्वामी विवेकानंद जी

आपको स्वामी विवेकानंद का परिचय देंना गलत होगा, क्योकिं भगवानों का कोई इंट्रोडक्शन दिया नहीं जाता. यह धरती पर आए वह इंसान थे, जिनको पूरी दुनिया फॉलो करती है और करती रहेगी, इनके कहे शब्दों पर चलने वाले व्यक्तित्व में सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, महान वैज्ञानिक निकोला टेस्ला हो या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पता नहीं कितने नामी युवा व्यक्तित्व होंगें. यह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हमारे वेदों, ग्रंथों की ताकत को पूरी दुनिया में पहुंचा कर एक ख्याति भारत के नाम की थी और बता दिया कि भारत क्या है, भारत को तोड़ना असंभव है और हम अनेकता में भी एकता ढूंढ लेते हैं.


स्वामी विवेकानंद आपको बताएंगे कि “सहनशीलता” क्या चीज होती है?

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असहनशीलता मौजूदा वक्त के सबसे चर्चित शब्दों में से एक है और आपने पिछले कुछ महीनों, सालों से इस शब्द का जिक्र कई बार सुना होगा. सब अपने-अपने तरीके से असहनशीलता शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. हमें लगता है कि देश के बहुत से विद्वान लोग सहनशीलता शब्द की शक्ति को पहचान नहीं पाये, इसलिए आज हम आपको सहनशीलता शब्द की शक्ति बताएंगे.

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आपने कन्याकुमारी का नाम तो सुना ही होगा. यह भारत का सबसे आखिरी शहर है, जहां पर हिंद महासागर और अरब सागर का मिलन होता है, और भारत के इस आखिरी छोर से पूरी दुनिया को सहनशीलता और सामाजिक सौहार्द का मजबूत संदेश भी जाता है, आपको शायद ही पता हो कन्याकुमारी को स्वामी विवेकानंद के जीवन का टर्निंग-पॉइंट माना जाता है. स्वामी विवेकानंद ने पूरे भारतवर्ष की पैदल यात्रा की थी, 25 दिसंबर 1892 को वे कन्याकुमारी पहुंचे थे. कन्याकुमारी में स्वामी विवेकानंद ने श्रीपाद शिला पर ध्यान किया था, और वह जगह समुद्र तल से 1.5 किलोमीटर दूर है, स्वामी जी के पास नाविक को देने के लिए पैसे नहीं थे तो स्वयं पानी में तैर कर वह उस शिला तक पहुंचे थे, उस शिला पर माता पार्वती के कन्या देवी रूप के पैर के निशान है और 25 दिसंबर से 27 दिसंबर 1892 तक 3 दिन और 3 दिन रात ध्यान में बैठे थे स्वामी विवेकानंद.

हम आपको आज के दिन हुई एक ऐतिहासिक घटना के बारे में बताते हैं.

आज से 154 साल पहले 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था, स्वामी स्वामी विवेकानंद एक एसे सन्यासी थे, जिन्होंने पूरी दुनिया को ना सिर्फ भारत की प्राचीन ज्ञान की रोशनी से चमकाया था, बल्कि भारत के बारे में अमेरिका सहित पूरी दुनिया की सोच को बदल कर रख दी थी. स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर भी मनाया जाता है, लेकिन एक बहुत बड़ी और विचित्र विडंबना है कि सहनशीलता की जिस शक्ति को स्वामी विवेकानंद ने आज से करीब 124 साल पहले पहचान लिया था, वह युवा शक्ति आज असहनशीलता के मार्ग पर चलकर समाज के विनाश का कारण बने है.

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इसलिए “राष्ट्रीय युवा दिवस” के मौके पर स्वामी विवेकानंद की कही बातों को जरा ध्यान से पढ़ें, जो उन्होनें वर्ष 1893 में पार्लियामेंट ऑफ़ द वर्ल्ड रिलेशन्स (Parliament of the World’s Religions) में दिए अपने भाषण में कही थी, यह आयोजन अमेरिका के शिकागो शहर में हुआ था, जहां स्वामी विवेकानंद भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. भाषण की शुरुआत उन्होंने Sisters and Brothers of America यानी मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों से की थी. उनके इन शब्दों को सुनकर वहां मौजूद 60,000 लोगों ने 2 मिनट तक स्वामी विवेकानंद के लिए खड़े होकर तालियां बजाई थी और उनका अभिवादन किया था. इस भाषण में नफ़रत की आग पर ठंडा पानी डालने की बहुत बड़ी शक्ति है.

“अमेरिका के बहनों और भाइयों, मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है.

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज, हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजे में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं. अगर यह भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव सभ्यता कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है. मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओ, हर तरह के क्लेश, चाहे वह तलवार से हो या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दूरी भावनाओं का विनाश करेगा.”

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जरा सोचिए


क साधारण से दिखने वाले व्यक्ति ने आज से 124 साल पहले भारत की सहनशील शक्ति को मिसाल बनाकर पूरी दुनिया के सामने पेश कर दिया था, लेकिन आज कितने दुख की बात है कि जिस देश ने दुनिया को सहनशीलता और धार्मिक सद्भाव का पाठ पढ़ाया, आज उसी देश में असहनशीलता के मुद्दे पर आपस में टकराव पैदा करके राजनीतिक रोटियां सेकी जा रही हैं.

 

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जय हिन्द जय भारत