चाणक्य और चंद्रगुप्त

“मित्र इस कुश को खोदकर उसमें मट्ठा क्यों डाल रहे हो ? इसका कांटा मेरे पैर में घुस गया मैंने काटा तो निकाल लिया, किंतु यह फिर किसी के पैर में ना चूभे, इसलिए इसे जड़ से नष्ट करना चाहिए” —- यह वार्तालाप चंद्रगुप्त तथा चाणक्य के बीच की है. Chanakya and Chandragupta, चाणक्य और चंद्रगुप्त

 भारतीय इतिहास और राजनीति  मैं चाणक्य का विशिष्ट स्थान है. शासन के विविध पहलुओं का जैसा सारगर्भित विवेचन उनके ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र‘ में है वैसा संभवतः विश्व के प्राचीन और आधुनिक किसी भी राजनीतिशास्त्र  के  विचारक ने  नहीं किया है. अतः चाणक्य की  गिनती विश्व के राजनीति शास्त्र के महानतम चिंतकों में की जाती है.

 चंद्रगुप्त के मौर्य साम्राज्य की स्थापना के साथ चाणक्य  का नाम जुड़ा है. चाणक्य की  सहायता, परामर्श एवं राजनीतिक कूटनीति से  चंद्रगुप्त अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल हुआ. चाणक्य का पूरा नाम ‘विष्णु गुप्त चाणक्य‘ था, उन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है. चाणक्य तक्षशिला के एक ब्राह्मण के पुत्र थे, बाल्यकाल में ही पिता की मृत्यु हो जाने पर चाणक्य  का पालन-पोषण उनकी माता ने किया. तक्षशिला में रहकर उन्होंने ज्ञानार्जन के साथ-साथ दर्शन का भी  अध्ययन किया. चाणक्य परम विद्वान थे परंतु बहुत क्रोधित एवं उग्र स्वभाव के थे.

चाणक्य और चंद्रगुप्त

 युवा होने पर चाणक्य जीविकोपार्जन के लिए मगध साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र पहुंचे. वहां मगध के नंद वंश के शासक घनानंद  से उनकी भेंट हुई सम्राट ने  को पाटलिपुत्र की धर्मशाला का प्रबंधक नियुक्त किया कटु अनुभव होने के कारण वहां  पदच्युत कर दिया गया उन्होंने इसे अपना अपमान समझाओ सम्राट घनानंद तथा नंद वंश के विनाश करने की प्रतिज्ञा ली वह सदैव इस खोज में रहते थे की प्रतिज्ञा कैसे पूरी करें उसी समय उनकी भेंट चंद्रगुप्त से हुई.

 चंद्रगुप्त मगध राज्य में राज्याधिकारी और सेना नायक था. वह बहुत महत्वाकांक्षी था, वह मगध साम्राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था. चंद्रगुप्त और चाणक्य की भेंट रास्ते में हुई. कुश में मट्ठा डाल रहे चाणक्य  को देखकर चंद्रगुप्त उनके दृढ़ निश्चय से प्रभावित हुए और उन्होंने चारों को अपना सहयोगी बना लिया. इस मित्रता ने भारतीय इतिहास को एक नवीन दिशा की ओर मोड़ दिया. चंद्रगुप्त में बल था और चाणक्य में बुद्धि. बल और बुद्धि का यह संयोग  भारतीय इतिहास में युग परिवर्तन की घटना सिद्ध  हुई.

 चाणक्य और चंद्रगुप्त ने मिलकर पाटलिपुत्र  पर आक्रमण कर दिया. घनानंद की प्रबल सैन्य शक्ति के कारण में पराजित हुए. घनानंद से पराजित होकर चाणक्य एक  गांव से होकर जा रहे थे. पास  के घर से एक महिला को कहते हुए उन्होंने सुना- ‘बेटा, तुम्हारी उंगलियों इसलिए जलीं  कि तुमने रोटी बीच से तोड़कर खाना प्रारंभ किया था.  यदि तुम रोटी को किनारे से खाते तो ऐसा न होता’. चाणक्य  को अपनी पराजय का कारण मिल गया. इस पराजय से दोनों ने अनुभव किया कि  साम्राज्य के केंद्र पर आक्रमण करके उन्होंने राजनीति और सामरिक भूल की है. साम्राज्य की शक्ति सदैव केंद्र में स्थित रहती है और सीमांत क्षेत्र में कमी  कमजोर. चंद्रगुप्त और चाणक्य ने अपनी रणनीति में परिवर्तन करके यह निर्णय लिया कि पहले मगध राज्य के सीमांत क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की जाए तत्पश्चात मगध राज्य पर आक्रमण करना उचित होगा.

 इस नवीन योजना के अनुसार चंद्रगुप्त और चाणक्य ने पंजाब पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की. इसके पश्चात चंद्रगुप्त एक विशाल सेना लेकर पाटलिपुत्र पहुंचा. इस युद्ध में घनानंद मारा गया. चंद्रगुप्त  ने चाणक्य की सहायता से मगध पर अधिकार प्राप्त कर लिया. चाणक्य ने चंद्रगुप्त का विधिवत राज्यभिषेक कर 321 ईसवी पूर्व में उसे मगध का सम्राट घोषित कर दिया.  चाणक्य की बुद्धिमत्ता और कूटनीति के कारण चंद्रगुप्त ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री और प्रमुख परामर्शदाता नियुक्त कर दिया. चाणक्य ने जीवन के अंतिम समय तक मौर्य साम्राज्य की सेवा की.

 चाणक्य ने महान ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र‘ की रचना की. ‘अर्थशास्त्र‘ में राजतंत्र,  जन तंत्र ,निरंकुश देशद्रोह शांति युद्ध  संधि मंत्री परिषद प्रशासकीय अधिकारियों निरीक्षकों तथा उनके कर्तव्य राजा के अधिकारों तथा कर्तव्यों राजा हित के कार्य के श्रेष्ठ आदर्श कर प्रणाली तथा राजनीति के विभिन्न विषयों पर नीतियों का विस्तार से विवेचन किया गया है ‘अर्थशास्त्र‘ में मौर्य के शासन प्रबंध राजनीतिक आर्थिक और सामाजिक दशा पर भी प्रकाश डाला गया है.

चाणक्य ने राजतंत्र को एक सर्वाधिक उपयोगी संस्था माना है उनके अनुसार राजा में विशिष्टगुण होना चाहिए  वह धर्मनिष्ठ सत्यवादी कृतज्ञ बलशाली वृद्धों का सम्मान करने वाला उत्साही विनयशील विवेक निर्भीक न्याय प्रिय मृदु भाषी तथा कारण होना चाहिए उसे काम क्रोध मद मोह अहंकार यादव शादी दुर्गुणों से दूर रहना चाहिए इस प्रकार राजा में ना केवल राजा के ही वर्ण श्रेष्ठ व्यक्ति के सभी गुण होने चाहिए.

 चाणक्य ने अपने  महान ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र‘ में लिखा है कि राज्य के कार्यों में सहयोग प्रदान करने के लिए  अमात्यों (मंत्री) का होना अनिवार्य है. राजा  देश काल और राजकीय  पद के  कर्तव्यों के अनुरूप मंत्री की नियुक्ति करें. चाणक्य ने कोष के विषय में लिखा है कि -कोष  से राज्य के समस्त कार्यों का आधार होता है. कोष राजा के पूर्वजों  और स्वयं उसके द्वारा धर्मानुसार संग्रहीत होना चाहिए. सेना के संगठन पर चाणक्य का मत था कि- सेना में ऐसे वीर और साहसी सैनिक हो, जो पिता-पितामह की परंपरा से चले आ रहे हो. वे अनुशासनबद्ध और प्रशिक्षित हो.

 चाणक्य के अनुसार राज्य का यह कर्तव्य है कि  आकस्मिक और प्राकृतिक आपदाओं से नागरिकों की रक्षा करें. राज्य को अपंग, शक्तिहीन, वृद्ध, रोगी और दीन-दुखियों का पालन-पोषण करना चाहिए. राज्य को शिक्षा की भी व्यवस्था करनी चाहिए. राज्य का यह कार्य है कि साहूकार, व्यापारी, जादूगर, शिल्पी, नट, शासकीय अधिकारी और कर्मचारी के शोषण-उत्पीड़न से प्रजा की भली-भांति रक्षा करें. व्यापारी अनुपयुक्त दर से क्रय-विक्रय न कर सके, इसके लिए राज्य को चाहिए कि वह नियम निर्धारित करें.

राज्य के कार्यों से  विदित होता है, कि  चाणक्य ने आधुनिक लोक कल्याणकारी राज्य की कल्पना कर ली थी. उन्होंने प्रजाहित को राज्य का लक्ष्य मान लिया था. वह स्वयं वर्षा  न होने के कारण अकाल के समय सैकड़ों साधुओं को नित्य भोजन कराते थे.

चाणक्य एक व्यवहार कुशल राजनीतिज्ञ थे, उन्होंने नीति पर भी एक पुस्तक लिखी है. उसमें उनके विचार हैं, जिनसे पता चलता है कि मौर्य साम्राज्य के निर्माता के रूप में वह सफल रहे. उन्होंने राजतन्त्र  के समर्थक होते हुए भी, निरंकुश स्वेच्छाचारी शासन का विरोध किया.

चाणक्य आधुनिक राजनीतिक विचारको, चिंतकों में अग्रणी माने जाते हैं.