औषधीय पौधे और जड़ी बूटियां

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औषिधीय पौधों का महत्व

कुदरत के दिये गये वरदानों में पेड़-पौधों का महत्वपूर्ण स्थान है। पेड़-पौधे मानवीय जीवन चक्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसमें न केवल भोजन संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है  बल्कि जीव-जगत से नाजुक संतुलन बनाने में भी ये आगे रहते हैं- कार्बन चक्र हो या भोजना श्रृंखला के पिरामिड में भी ये सर्वोच्च स्थान ही हासिल करते हैं। इनकी उपयोगिता को देखते हुए इनको अनेक संवर्गों में बांटा गया है। इनमें औषधीय पौधे न केवल अपना औषधीय महत्व रखते हैं बल्कि आय का भी एक जरिया बन जाते हैं। हमारे शरीर को निरोगी बनाये रखने में औषधीय पौधे का अत्यधिक महत्व होता है, यही वजह है कि भारतीय पुराणों, उपनिषदों, रामायण एवं महाभारत जैसे प्रमाणिक ग्रंथों में इसके उपयोग के अनेक साक्ष्य मिलते हैं।

इससे प्राप्त होने वाली जड़ी-बूटियों के माध्यम से न केवल हनुमान ने भगवान लक्ष्मण की जान बचायी बल्कि आज की तारीख में भी चिकित्सकों द्वारा मानव रोगोपचार हेतु अमल में लाया जाता है। यही नहीं, जंगलों में खुद-ब-खुद उगने वाले अधिकांश औषधीय पौधों के अद्भुत गुणों के कारण लोगों द्वारा इसकी पूजा-अर्चना तक की जाने लगी है जैसे-तुलसी, पीपल, आक, बरगद तथा नीम इत्यादि। प्रसिद्ध विद्वान चरक ने तो हरेक प्रकार के औषधीय पौधों का विश्लेषण करके बीमारियों में उपचार हेतु कई अनमोल किताबों की रचना तक कर डाली है जिसका प्रयोग आजकल मानव का कल्याण करने के लिए किया जा रहा है।

औषधीय पेड़–पौधे, जड़ी-बूटियां और उनके वानस्पतिक नाम

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1 . नीम (Azadirachta indica)

एक चिपरिचित पेड़ है, जो 20 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है, इसकी एक टहनी में करीब 9-12 पत्ते पाए जाते है। इसके फूल सफ़ेद रंग के होते हैं और इसका पत्ता हरा होता है जो पक कर हल्का पीला–हरा होता है। अक्सर ये लोगो के घरों के आस-पास देखा जाता है।

2. तुलसी (ocimum sanctum):

तुलसी एक झाड़ीनुमा पौधा है। इसके फूल गुच्छेदार तथा बैंगनी रंग के होते हैं तथा इसके बीज घुठलीनुमा होते है। इसे लोग अपने आंगन में लगाते हैं ।

3 . ब्राम्ही/ बेंग साग (hydrocotyle asiatica):

यह साग पानी की प्रचुरता में सालो भर हरी भरी रहने वाली छोटी लता है जो अक्सर तालाब या खेत के किनारे पायी जाती है। इसके पत्ते गुदे के आकार (1 /2 -2 इंच) के होते हैं। यह हरी चटनी के रूप में आदिवासी समाज में प्रचलित है ।

4 . ब्राम्ही (cetella asiatica):

यह अत्यंत उपयोगी एवं गुणकारी पौधा है । यह लता के रूप में जमीन में फैलता है। इसके तने कोमल तथा इसमें 1-3 फीट लम्बी और थोड़ी-थोड़ी दूर पर गांठ होती है। इन गांठो से जड़े निकलकर जमीन में चली जाती है। पत्ते छोटे,लंबे, अंडाकार, चिकने, मोटे, हरे रंग के तथा छोटे–छोटे होते हैं जो सफ़ेद हल्के नीले-गुलाबी रंग लिए फूल होते हैं। यह नमी वाले स्थान में पाए जाते हैं ।

5 . हल्दी (curcuma longa):

हल्दी  खेतों में तथा बगान में भी लगाई जाती है। इसके पत्ते हरे रंग के दीर्घाकार होते हैं। इसकी  जड़ को उपयोग में लाया जाता है। कच्चे हल्दी के रूप में यह सौन्दर्यवर्द्धक भी है। सुखी हुई हल्दी को लोग मसाले के रूप में प्रयोग में लाते हैं। हल्दी रक्तशोधक और काफ नाशक है ।

6 . चिरायता / भुईनीम (Andrographis paniculata):

छोटानागपुर के जगलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला 1-3 फीट तथा उसकी अनेक शाखाएँ पतली–पतली होती है। इसकी पत्तियां नुकीली, भालाकर, 3-4 इंच लम्बी तथा एक से सवा इंच चौड़ी होती है। फूल छोटे हल्के गुलाबी और सफ़ेद रंग के होते हैं, यह बरसात के दिनों में पनपता है और जाड़े में फल तथा फूल लगते हैं। यह स्वाद में कड़वा होता है ।

7. अडूसा :

यह भारत के प्रायः सभी क्षेत्रो में पाया जाता है। यह सालों भर हरा भरा रहनेवाला झाड़ीनुमा पौधा है जो पुराना होने पर 8-10 फीट तक बढ़ सकता है।इसकी गहरे हरे रंग की पत्तियां 4-8 इंच लम्बी और 1-3 इंच चौड़ी है। शरद ऋतू के मौसम में इसके अग्र भागों के गुच्छों में हल्का गुलाबीपन लिए सफ़ेद रंग के फूल लगते हैं।

8 . सदाबहार (Catharanthus roseus):

यह एक छोटा पौधा है जो विशेष देखभाल के बिना भी रहता है। चिकित्सा के क्षेत्र में इसका अपना महत्त्व है। इसकी कुछ टहनियां होती है और यह 50 सेंटी मीटर ऊंचाई तक बढ़ता है। इसके फूल सफ़ेद या बैगनी मिश्रित गुलाबी होते हैं। यह अक्सर बगान, बलुआही क्षेत्रो, घेरों के रूप में भी लगाया जाता है ।

9 . सहिजन / मुनगा (Moringa oleifera):

सहिजन एक लोकप्रिय पेड़ है।जिसकी ऊंचाई 10 मीटर या अधिक होती है । इसके छालों में लसलसा गोंद पाया जाता है। इसके पत्ते छोटे और गोल होते हैं तथा फूल सफेद होते हैं। इसके फूल-पते और फल (जोकी) खाने में इस्तेमाल में लाये जाते हैं। इसके पत्ते (लौह) आयरन के प्रमुख स्रोत हैं जो गर्भवती माताओं के लिए लाभदायक है । इसमें रोगों से लड़ने की छमता अर्थात रोग-प्रतिरोधक छमता पाई जाती है।

10. हडजोर :

यह औषधीय पौधे वानस्पतिक रूप से दो प्रकार का होता है :-

10.1- Tinospora cordifolia:

हड्जोरा /अमृता एक लता है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के तथा हृदयाकार होते हैं। मटर के दानो के आकार के इसके फल कच्चे में हरे तथा पकने पर गहरे लाल रंग होते हैं। यह लता पेड़ों , चाहरदीवारी या घरों के छतों पर आसानी से फैलती है। इसके तने से पतली-पतली जड़ें निकल कर लटकती है ।

10.2 Vitis quadrangularis:

हडजोरा का यह प्रकार गहरे हरे रंग में पाया जाता है। ये गुठलीदार तथा इसमें  थोड़ी-थोड़ी दूर पर गांठे होती है। इसके पत्ते बहुत छोटे होते हैं। जोड़ों के दर्द तथा हड्डी के टूटने तथा मोच आने पर इसका इस्तेमाल किये जाने के कारण इसे ‘हडजोरा’ के नाम से जाना जाता है ।

11. करीपत्ता (Maurraya koengii):

करीपत्ता का पेड़ दक्षिण भारत में प्रायः सभी घरों में पाया जाता है। इसका इस्तेमाल मुख्यता भोजन में सुगंध के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। इसके पत्तों का सुगंध बहुत तेज़ होता है। इसकी छाल गहरे धूसर रंग के होती है, इसके पत्ते अंडाकार, चमकीले और हरे रंग के होते हैं। इसके फूल सफ़ेद होते हैं एवं गुच्छेदार होते हैं। इसके फल गहरे लाल होते हैं जो बाद में बैगनी मिश्रित कालापन लिए होता है ।

12. दूधिया घास (Euphorbia hirat):

यह साधरणतः खेतों, खलिहानों, मैदानों में घासों के साथ पाया जाता है। इसके फूल बहुत छोटे होते हैं जो पत्तों के बीच होते हैं।यह स्वाद में कडुवा होता है।इसकी छोटी टहनियों जी तोड़ने पर ढूध निकलता है जो लसलसा होता है ।

13. मीठा घास (Scoparia dulcis ):

यह बगान, खेतों के साथ पाया जाता है।इसके पत्ते छोटे होते हैं और फल छोटे-छोटे होते हैं जो राइ के दाने के बराबर देखने में लगते हैं।स्वाद में मीठा होने के कारण मीठा घास के रूप में जाना जाता है ।

14. भुई आंवला (phyllanthus niruri):

यह औषधीय पौधे एक अत्यंत उपयोगी पौधा है जो बरसात के मौसम में जनमते हैं। इस पौधे की ऊंचाई 1- 25 इंच ऊँचा तथा कई शाखाओं वाले होते हैं। पत्तियां आकार में आंवले की पत्तियों की सी होती है और निचली सतह पर छोटे छोटे गोल फल पाए जाते हैं। यह जाड़े के आरंभ होते होते पक जाते हैं और फल तथा बीज पककर झड जाते हैं और पौधे समाप्त होते हैं ।

15. अड़हुल (Hisbiscus rosasinensis):

अड़हुल या गुड़हल का फूल लोगो के घरों में लगाया जाता है। यह दो प्रकार का होता है – लाल और सफ़ेद जो दवा के काम में लाया जाता है। अड़हुल का पत्ता गहरा हरा होता है।

16. घृतकुमारी / घेंक्वार (Aloe vera):

यह एक से ढाई फूट ऊँचा प्रसिध्द पौधा है। इसकी ढाई से चार इंच चौड़ी,नुकीली एवं कांटेदार किनारों वाली पत्तियां अत्यंत मोटी एवं गूदेदार होती है पत्तियों में हरे छिलकेके नीचे गाढ़ा, लसलसा रंगीन जेली के सामान रस भरा होता है जो दवा के रूप में उपयोग होता है ।

17. महुआ (madhuka indica):

महुआ का वृक्ष 40-50 फीट ऊँचा होता है।इसकी छाल कालापन लिए धूसर रंग की तथा अन्दर से लाल होती है। इस औषधीय पौधे के पत्ते 5- 9 इंच चौड़े होते हैं। यह अंडाकार, आयताकार, शाखाओं के अग्र भाग पर समूह में होते हैं। महुआ के फूल सफ़ेद रसीले और मांसल होते हैं। इसमे मधुर गंध आती है। इसका पका फल मीठा तथा कच्चा में हरे रंग का तथा पकने पर पीला या नारंगी रंग का होता है ।

18. दूब घास ( cynodon dactylon):

दूब घास 10 -40 सेंटी मीटर ऊँचा होता है। इसके पत्ते 2-10 सेंटी मीटर लम्बे होते है इसके फूल और फल सालों भर पायी जाती है। दूब घास दो प्रकार के होते हैं – हरा और सफ़ेद हरी दूब को ‘नीली या काली दूब’ भी कहते है।

19. आंवला (Phyllanthus emblica):

इस औषधीय पौधे का वृक्ष 5-10 मीटर ऊँचा होता है ।आंवला स्वाद में कटु, तीखे, खट्टे, मधुर, और कसैले होते हैं। अन्य फलों की अपेक्षा आंवले में विटामिन-सी की मात्रा अधिक होती है। उसके फूल पत्तीओं के नीचे गुच्छे के रूप में होती है। इनका रंग हल्का हरा तथा सुगन्धित होता है इसके छाल धूसर रंग के होते हैं। इसके छोटे पत्ते 10–13 सेंटी मीटर लम्बे टहनियों के सहारे लगा रहता है इसके फल फरवरी –मार्च में पाक कर तैयार हो जाते हैं जो हरापन लिए पिला रहता है ।

20. पीपल (Ficus religiosa):

पीपल विशाल वृक्ष है जिसकी अनेक शाखाएँ होती है।इनके पत्ते गहरे हरे रंग के हृदय आकार होती है। इनके जड़ ,फल , छाल , जटा , दूध सभी उपयोग में लाये जाते हैं। हमारे भारत में औषधीय पौधे पीपल का धार्मिक महत्त्व है ।

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21. लाजवंती/लजौली (Mimosa pudica):

लाजवंती नमी वाले स्थानों में जायदा पायी जाती है इसके छोटे पौधे में अनेक शाखाएं होती है। इनके पत्ते को छूने पर ये सिकुड़ कर आपस में सट जाती है। इस कारण इसी ‘लजौली नाम’ से जाना जाता है। इसके फूल गुलाबी रंग के होते हैं ।

22. करेला (Mamordica charantia):

यह साधारणतया व्यव्हार में लायी जाने वाली उपयोगी हरी सब्जी है जो लतेदार होती है। इसका रंग गहरा हरा तथा बीज सफ़ेद होता है।पकने पर फल का रंग पिला तथा बीज लाल होता है। यह स्वाद में कड़वा होता है ।

23. पिपली (Piperlongum):

साधारणतया ये गरम मसले की सामग्री के रूप में जानी जाती है। पिपली की कोमल लताएँ 1-2मीटर जमीन पर फैलती है। ये गहरे हरे रंग के चिकने पत्ते 2-3 इंच लम्बे एवं 1-3 चौड़े हृदयाकार के होते हैं। इसके कच्चे फल पीले होते हैं तथा पकने पर गहरा हरा फिर काला हो जाता है। इसके फलों को ही पिपली कहते हैं । औषधीय पौधे

24. अमरुद (Psidium guayava):

अमरुद एक फलदार वृक्ष है।यह साधारणतया लोगों के घर के आंगन में पाया जाता है इसका फल कच्चा में हरा और पकने पर पिला हो जाता है।  इसके प्रकार– यह सफ़ेद और गुलाबी गर्भ वाले होते हैं। इसके फूल सफ़ेद रंग के होते हैं। यह मीठा कसैला , शीतल स्वादिस्ट फल है जो आसानी से उपलब्ध होता है ।

25. कंटकारी/ रेंगनी (Solanum Xanthocarpum):

यह परती जमीन में पाए जाने वाला कांटेदार हलकी हरी जड़ी है। इसके कांटेदार पौधे 5- 10 सेंटी मीटर लम्बी होती है। इसके फूल बैंगनी रंग के पाए जाते हैं।इसके फल के भीतर असंख्य बीज पाए जाते हैं ।

26. जामुन (Engenia jambolana):

जामुन एक उत्तम फल है। गर्मी के दिनों में जैसा आम का महत्व है वैसे ही इसका महत्व गर्मी के अंत मिएँ तथा बरसात में होता है। यह स्वाद में मीठा कुछ खट्टा कुछ कसैले होते हैं। जामुन कर रंग गहरा बैंगनी होता है । औषधीय पौधे

27. इमली (Tamarindus indica):

इमली एक बड़ा वृक्ष है जिसके पत्ते समूह में पाए जाते हैं जो आंवले के पत्ते की तरह छोटे होते हैं। इसका फल आरंभ में हरा पकने पर हल्का भूरा होता है यह स्वाद में खट्टा होता है।

28. अर्जुन (Terminalia arjuna):

यह असंख्य शाखाओं वाला लम्बा वृक्ष है।इसके पत्ते एकदूसरे के विपरीत दिशा में होते हैं।इसके फूल समूह में पाए जाते हैं।तथा फल गुठलीदार होता है जिसमें पांच और से पंख की तरह घेरे होते हैं ।

29. बहेड़ा (Terminalia belerica):

बहेड़ा का पेड़ 15- 125 फीट ऊँचा पाया जाता है, इसका ताना गोल एवं आकार में लम्बा , 8 -35 फीट तक के घेरे वाला होता है। इसकी छाल तोड़ी कालिमा उक्त भूरी और खुरदुरी होती है। इसके फल, फूल, बीज, वृक्ष की छाल , पत्ते तथा लकड़ी सभी दवा के काम में आते हैं । औषधीय पौधे

30. हर्रे (Terminalia chebula):

यह एक बड़ा वृक्ष है।इसके फल कच्चे में हरे तथा पकने पर पीले धूमिल रंग के होते हैं। इसके फल शीत काल में लगते हैं जिसे जनवरी – अप्रैल में जमा किया जाता है। इसके छाल भूरे रंग के होते हैं।इसके फूल छोटे, पीताभ तथा फल 1-2 इंच लम्बे , अंडाकार होते हैं ।

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31. मेथी (Trigonella foenum):

यह औषधीय पौधे लोकप्रिय भाजिओं में से एक है। इनके गुणों के कारण इसका उपयोग प्रत्यक घर में होता है। इस औषधीय पौधे की ऊंचाई 1- 1 ½ फीट होती है , बिना शाखाओं के। मेथी की भाजी तीखी, कडवी, और वायुनाशक है। छोटानागपुर में इसे सगों के साथ मिला कर खाने में इस्तेमाल किया जाता है । इसमें लौह तत्त्व की मात्रा अधिक होती है ।

32. सिन्दुआर / निर्गुण्डी (Vitex negundo):

यह झड़ी दार पौधा जो कभी कभी छोटा पेड़ का रूप ले लेता है।इसके पत्ते 5 -10 सेंटीमीटर लम्बी तथा छाल धूसर रंग का होता है इसके फूल बहुत छोटे और नीलेपन लिए बैंगनी रंग के होते हैं जो गुच्छे दार होते हैं इसके फाल गुठलीदार होते हैं जो 6 मिलीमीटर डाया मीटर से कम होते हैं और ये पकने पर काले रंग के होते हैं ।

33. चरैयगोडवा (Vitex penduncularis):

इसका पेड़ 10 – 18 मीटर ऊँचा होता है इसके तीन पत्ते एक साथ पाए जाते हैं। जो देखने में चिड़िया के पर की तरह लगते हैं इसलिए इसे चरैयगोडवा कहते हैं। इसके फूल सफ़ेद है। पीलापन के लिए जो अप्रैल –जून माह में मिलते हैं। इसके फल अगस्त- सितम्बर माह में पाए जाते हैं ।

34. बैर (ज़िज्य्फुस jujuba):

बैर का वृक्ष कांटेदार होता है। इसके कांटे छोटे छोटे होते हैं तथा इसकी पतियाँ गोलाकार तथा गहरे हरे रंग की होती है। इसके फल कच्चे में हरे रंग तथा पकने पर लाल होते हैं। यह स्वाद में खट्टा मीठा तथा कसैला होता है ।

35. बांस (Bambax malabaricum):

बांस साधारणतया घर के पिछवाड़े में पाया जाता है यह 30 -50 मीटर ऊँचा बढ़ता है, इसके पत्ते लम्बे और नुकीले होते हैं बांस में थोड़ी थोड़ी दूर पर गांठे होती है

36. पुनर्नवा / खपरा साग (Boerhavia diffusa):

यह आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान की एक महत्वपूर्ण वनौषधि है। पुनर्नवा के ज़मीन पर फैलने वाले छोटी लताएँ जैसे पौधे बरसात में परती जमीन , कूड़े के ढेरों , सड़क के किनारे , जहाँ –तहां स्वयं उग जाते हैं।गर्मीयों में यह प्राय: सुख जाते हैं पर वर्षा में पुन: इसकी जड़ से नयी शाखाएँ निकलती है।पुनर्नवा का पौधा अनेक वर्षो तक जीवित रहता है।पुनर्नवा की लता नुमा हल्के लाल एवं काली शाखाएं 5- 7 फीट तक लम्बी जो जाती है पुनर्नवा की पत्तियां 1 – 1 ¼ इंच लम्बी ¾ – 1 इंच चौड़ी, मोटी ( मांसल) और लालिमा लिए हरे रंग की होती है।फूल छोटे छोटे हल्के गुलाबी रंग के होते हैं।पुनर्नवा के पत्ते और कोमल शाखाओं को हरे साग के रूप में खाया जाता है। इसे स्थानीय लोग ‘खपरा साग’ के रूप से जानते हैं ।

37. सेमल (Bombax malabaricum):

सेमल के पेड़ बडे मोटे तथा वृक्ष में कांटे उगे होते हैं इसकी शाखाओं में 5- 7 के समूह में पत्ते होते हैं।जनवरी –फ़रवरी के दौरान इसमें फूल आते हैं।जिसकी पंकुधियाँ बड़ी तथा इनका रंग लाल होता है बैशाख में फल आते हैं जिनके सूखने पर रूई और बीज निकलते है ।

38. पलाश (Butea fondosa):

पलाश के पेड़ 5 फीट से लेकर 15-20 फीट या ज्यादा ऊँचे भी होते हैं।इसके एक ही डंठल में तीन पत्ते एक साथ होते हैं।बसंत ऋतू में इसमे केसरिया लाल राग के फूल लगते हैं तब पूरा वृक्ष दूर से लाल दिखाई देता है ।

39. पत्थरचूर (Coleus aromaticus):

यह 1 मीटर ऊंचाई तक बढ़ता है।इसके पत्ते अन्य पत्तों की अपेक्षा कुछ मोटे चिकने और ह्र्द्याकार होती है।इसके फूल सफ़ेद या हल्के बैंगनी रंग के पाए जाते हैं ।

40. सरसों (Sinapis glauca):

सरसों खेतों और बागानों में विस्तृत रूप से खेती किया जाने वाला पौधा है।इस पौधे की ऊंचाई 1.5 मीटर तक होती है।इसके पते के आकार नुकिलेदार होते हैं। तथा फूल पीले रंग में तथा बीज को तेल निकालने के लिए इस्तमाल में लाते हैं।

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41. चाकोड़ (Cassia obtusifolia):

चाकोड़ स्थानीय लोगो में चकंडा के नाम से प्रसिद्ध है।इसके पत्ते अंडाकार होते हैं। तथा फूल छोटे और पीले रंग के होते हैं।इसके फल (बीजचोल) लम्बे होते है।चाकोड़ 1 मीटर तक ऊँचा होता है।यह सड़क किनारे, परती जमीन में पाया जाता है।

42. मालकांगनी / कुजरी (Celastrus paniculatus):

यह झाड़ीनुमा लतेदार और छोटे टहनियों के साथ पाया जाता है जो व्यास में (डायमीटर) 23 सेंटी मीटर और तक ऊंचाई 18 मीटर होती है। इसके पत्ते दीर्घाकार, अंडाकार और द्न्तादेदार होते हैं।इसके फूल हरापन लिए पिला होता है।जिसका व्यास 3.8 मिली मीटर होता है। इसके बीज पूर्णतया नारंगी लाल बीजचोल के साथ लगे होते हैं ।

43. दालचीनी (Cinnamonum cassia):

यह मधुर, कडवी सुघंधित होती है।इस वृक्ष की छाल उपयोगी होती है।इसे गर्म मसले के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।

44. शतावर (Asparagus racemosus):

यह बहुत खुबसूरत झाड़ीनुमा पौधा है।जिसे लोग सजाने के कम में भी लाते हैं।इसके पत्ते पतले , नुकिलेदार हरे-भरे होते हैं।इसके फूल देखने में बहुत छोटे – छोटे , सफ़ेद रंग के सुगन्धित होते हैं।इसके फल हरे रंग के होते है जो पकने पर काले रंग के हो जाते हैं।इसकी जड़ आयुर्वेद के क्षेत्र में उपयोगी है जो इस्तेमाल में लायी जाती है ।

45. अनार (punica granatum):

अनार झाड़ीनुमा पतली टहनियों वाला होता है। एक्स फूल लाल रंग का होता है।अनार स्वाद में मीठा , कसैलापन लिए हुए रहता है।इसके फल लाल और सेफ प्रकार के होते हैं। एक्से फूल फल तथा छिलका उपयोग में लाये जाते हैं ।

46. अशोक (Saraca indica):

यह सदाबहार वृक्ष है जो अत्यंत उपयोगी है। इसके पते सीधे लम्बे और गहरे रंग के होते हैं।इसे लोग शोभा बदने के लिए लगते है।इसके छाल धूसर रंग,स्पर्श करनी में कुर्दारी तथा अन्दर लाल रंग की होती है।यह स्वाद में कडवा , कसैला , पचने में हल्का रुखा और शीतल होता है ।

47. अरण्डी / एरण्ड (Ricin#us communis):

यह 7-10 फीट ऊँचा होता है। इसके पत्ते चौड़े तथा पांच भागों में बटें होते अरण्ड के पत्ते फूल बीज और तेल उपयोग में लाये जाते हैं।इसके बीजों का विषैला तत्त्व निकल कर उपयोग में लाये जाते हैं। यह दो प्रकार लाल और सफ़ेद होते हैं ।

48. कुल्थी / कुरथी (Dolichos biflorus):

यह तीन पत्तीओं वाला पौधा होता है जिसमे सितम्बर- नवम्बर में फूल तथा अक्टूबर-दिसम्बर के बीच फल आते हैं।कुरथी कटु रस वाली,कसैली होती है।यह गर्म, मोतापनासक, और पथरी नासक है ।

49. डोरी (Bassia latifolia):

यह महुआ का फल है इसे तेल बनाने के काम में लाया जाता है इसकी व्याख्या आगे की गई है ।

50. चिरचिटी (Achyranthes aspera) :

एक मीटर या अधिक ऊँचा होता है। इसके पत्ते अंडाकार होते हैं इसके फूल 4-6 मिलीमीटर लम्बे , सफेद्पन लिए हुए हरे रंग या बैगनी रंग के होते हैं ।

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51. बबूल (Acacia arabica):

बबूल का वृक्ष मध्यमाकार , कांटे दार होता है। इसके पत्ते गोलाकार और छोटे छोटे होते हैं।पत्तों में भी कांटे होते है इसके फूल छोटे गोलाकार और पीले रंग के होते हैं। इसकी फलियाँ लम्बी और कुछ मुड़ी हुई होती है। बबूल का गोंद चिकित्सा की दृष्टी से उपयोगी है।

52. कटहल (Artocarpus integrifolia):

कटहल के पेड़ से सभी परिचित हैं। इसका फल बहुत बड़ा होता है। कभी-कभी इसका वजन 30 किलो से भी ज्यादा होता है। स्थानीय लोगो में सब्जी और फल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 10 मीटर या उससे अधिक हो सकती है। यह एक छाया दर वृक्ष है। इसकी अनेक शाखाएँ फैली होती है ।

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स्रोत: ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची, झारखण्ड.