क्या है ‘महाभाष्य’ और कौन थे महर्षि पतंजलि
महर्षि पतंजलि प्राचीन भारत के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों में से एक है, उनके जन्म के विषय में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलता है, ये पाटलिपुत्र के राजा पुष्यमित्र शुंग के समकालीन (185 से 73 ईसा पूर्व) माने जाते हैं, यह अपने दो मुख्य कार्यों के लिए विख्यात है, प्रथम तो व्याकरण की पुस्तक ‘महाभाष्य’ के लिए तथा दूसरे पाणिनि के अष्टाध्यायी की टीका लिखने के लिए इन्होंने ‘योगाशास्त्र’ की रचना की.
महर्षि पतंजलि ‘महाभाष्य’ की रचना काशी में की, काशी में ‘नागाकुआं‘ कुमार नामक स्थान पर इस ग्रंथ की रचना हुई थी, नागपंचमी के दिन इस कुएं के पास अभी आनेक पंडित एवं विद्यार्थी एकत्र होकर संस्कृत व्याकरण के संबंध में शास्त्रार्थ करते हैं, ‘महाभाष्य’ व्याकरण का ग्रंथ है, किंतु इसमें साहित्य धर्म भूगोल समाज रहन सहन आदि से संबंधित तथ्य मिलते हैं ,इस पुस्तक की भाषा शैली उत्कृष्ट है.
महर्षि पतंजलि की मृत्यु के दो 300 साल बाद इनकी पुस्तक लुप्त हो गई क्योंकि उस युग में छापने की मशीन नहीं थी, हाथ से लिखी पुस्तको की एकाध प्रतियां होती थी, आज से लगभग 1100 साल पहले कश्मीर के राजा ‘जयाआदित्य’ ने बड़े परिश्रम से इस पुस्तक की खोज की और उन्होंने पूरी पुस्तक लिखवाकर अपने राज्य में उसका प्रचार करवाया, तब से आज तक इस की पढ़ाई होती चली आ रही है आज जो ‘महाभाष्य’ का ज्ञान नहीं रखता है उसे संस्कृत भाषा का पंडित नहीं माना जाता, पतंजलि ने संस्कृत भाषा को वैज्ञानिक स्वरुप प्रदान किया, इतने प्राचीन काल में विश्व के किसी भी देश में व्याकरण का ऐसा विद्वान नहीं हुआ. महर्षि पतंजलि एक महान पुरुषों में से एक है जो एक देश में जन्म लेकर भी पूरे विश्व के हो जाते हैं .
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